December 6, 2025

    क्या 7 साल बाद दहेज का केस दर्ज हो सकता है

    क्या शादी के 7 साल बाद भी दहेज का केस दर्ज हो सकता है? इस ब्लॉग में जानिए 498A, 406 और 304B जैसी धाराओं के नियम, समय-सीमा, FIR देरी का प्रभाव, और पति-पक्ष कैसे कानूनी रूप से अपना बचाव कर सकता है। पूरी कानूनी गाइड सरल हिंदी में।

    क्या 7 साल बाद दहेज का केस दर्ज हो सकता है 

    भारत में दहेज के मामलों (Dowry Cases) को लेकर कानून बहुत सख्त है।
    लेकिन लोगों के मन में एक बड़ा सवाल अक्सर आता है—
    “क्या शादी के 7 साल बाद भी दहेज का केस दर्ज किया जा सकता है?”

    इस सवाल का जवाब हाँ भी है और नहीं भी, और यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि आरोप किस प्रकार के हैं, क्या सबूत हैं, और शिकायत किस धारा के अंतर्गत दर्ज की जा रही है।

    इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि 7 साल बाद दहेज केस कब दर्ज हो सकता है, कब नहीं हो सकता, और पति-पक्ष को क्या करना चाहिए।

    1. दहेज से जुड़े केस कौन-कौन से होते हैं

    दहेज मामलों में आमतौर पर ये धाराएँ लगाई जाती हैं:

    • 498A IPC – दहेज प्रताड़ना

    • 406 IPC – स्ट्रिडन/गहनों का गबन

    • 304B IPC – दहेज मृत्यु (Dowry Death)

    • Dowry Prohibition Act, 1961

    इनमें से हर एक धारा की समय-सीमा (Limitation) अलग होती है।

    2. क्या 7 साल बाद 498A दर्ज हो सकता है

    हाँ, 498A (Cruelty/Dowry Harassment) 7 साल बाद भी दर्ज हो सकती है।

    क्योंकि 498A के लिए कोई निश्चित समय सीमा नहीं है
    यह “कंटिन्यूअस ऑफ़ेन्स” माना जाता है, यानी यदि पत्नी को लगातार प्रताड़ना हुई या वह यह साबित कर दे कि प्रताड़ना शादी के किसी भी वर्ष में हुई—तो शिकायत दर्ज की जा सकती है।

    लेकिन…

     FIR की देरी एक बड़ा संदेह पैदा करती है

    अगर पत्नी शादी के 8वें, 10वें या 12वें साल में अचानक शिकायत करे,
    तो अदालत पूछेगी:

    • इतने साल चुप क्यों रहीं?

    • प्रताड़ना लगातार थी या एक बार का आरोप है?

    • कोई मेडिकल, चैट, संदेश या गवाह है?

    • क्या मामला सिर्फ बदले या दबाव के लिए है?

    ज़्यादा देरी वाले केस अक्सर कमजोर हो जाते हैं।

    3. क्या 7 साल बाद 304B (Dowry Death) का केस दर्ज हो सकता है

    नहीं — 304B IPC केवल शादी के 7 साल के भीतर लागू होता है।

    यदि पत्नी की मृत्यु शादी के 7 साल बाद हुई है,
    तो 304B (दहेज मृत्यु) लागू नहीं होती।

    ऐसे में मामला केवल:

    • 302 (हत्या),

    • 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना),
      या

    • 498A (क्रूरता)

    के रूप में जांचा जा सकता है — पर 304B नहीं।

    4. क्या 406 IPC (गहनों/स्ट्रिडन का गबन) 7 साल बाद दर्ज हो सकता है

    हाँ, लेकिन केवल तब जब पत्नी साबित करे कि:

    • उसके गहने/सामान अभी भी पति या ससुराल वालों के पास हैं,

    • या उन्होंने वापस देने से इनकार किया।

    लेकिन बहुत लंबी देरी पर पुलिस और कोर्ट सख्त सवाल पूछते हैं,
    क्योंकि समय बीतने से सबूत कमजोर हो जाते हैं।

    5. 7 साल बाद दर्ज दहेज केस किन आधारों पर कमजोर पड़ता है

     FIR बहुत देर से दर्ज होना
     आरोपों का कोई सबूत न होना
     गवाहों के बयान अस्पष्ट होना
     मेडिकल रिपोर्ट न होना
     शादी लंबे समय से स्थिर रही हो
     बीच के सालों में कोई शिकायत या रिपोर्ट न हो
     मामला सिर्फ बदले की भावना से होना

    लंबे समय बाद दर्ज शिकायतों में अदालत डिटेल्ड इन्वेस्टिगेशन करती है।

    6. पति-पक्ष को क्या करना चाहिए (Legal Defence)

     1. अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail – CrPC 438)

    गिरफ़्तारी का जोखिम हो तो तुरंत AB लें।

     2. FIR की कॉपी निकलवाएँ

    देखें कि आरोप किस आधार पर लगाए गए हैं।

     3. देरी के कारण पर सवाल उठाएँ

    क्यों इतने साल बाद शिकायत की गई?

     4. सबूत इकट्ठे करें

    • चैट

    • कॉल रिकॉर्ड

    • तस्वीरें

    • यात्रा टिकट

    • पड़ोसियों/गवाहों के बयान

    • दहेज न लेने के प्रमाण
      यह आपका केस मजबूत करते हैं।

     5. FIR Quashing (High Court – CrPC 482)

    यदि FIR में तथ्य नहीं हों, तो High Court झूठी FIR रद्द कर सकती है।

    7. क्या पत्नी झूठा दहेज केस करे तो पति क्या कर सकता है

    पतिपक्ष अपने बचाव के साथ-साथ काउंटर केस भी कर सकता है:

    • IPC 182 – झूठी जानकारी देना

    • IPC 211 – झूठा केस बनाना

    • Defamation (मानहानि)

    • Compensation Claim

    यह साबित करने पर कि मामला झूठा और दुर्भावनापूर्ण था।

    8. निष्कर्ष (Conclusion)

    7 साल बाद दहेज का केस दर्ज हो सकता है—लेकिन हर धारा पर अलग नियम लागू होते हैं।
    498A और 406 कई साल बाद भी दर्ज हो सकते हैं,
    लेकिन 304B (दहेज मृत्यु) केवल शादी के 7 साल के भीतर लागू होती है।

    सही दस्तावेज, सबूत और कानूनी रणनीति से लंबे समय बाद दर्ज केस भी कमजोर हो जाते हैं।
    शांत रहें, जमानत लें, और अनुभवी वकील के साथ सही कानूनी प्रक्रिया अपनाएँ—सत्य हमेशा सामने आता है।

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